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हमारे ग्रह (पृथ्वी) को सबसे बड़ा खतरा हमारी इस मानसिकता से है कि कोई और इसे बचा लेगा ।

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हमारे ग्रह (पृथ्वी) को सबसे बड़ा खतरा हमारी इस मानसिकता से है कि कोई और इसे बचा लेगा ।   लगातार बढ़ते प्रदूषण और मानवीय हस्तक्षेपों ने आज पूरे विश्व के अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न कर दिया है। इस संभावित खतरे के लिए हम सम्पूर्ण मानव जाति ज़िम्मेवार हैं। मानव के प्रकृति और प्राकृतिक क्षेत्र में अत्यधिक हस्तक्षेप ने पूरे विश्व का कायाकल्प कर दिया है। पूरा विश्व अपना नैसर्गिक सौंदर्य और संतुलन खोने लगा है। इस विकट परिस्थिति में आज हम मानव और देश के बुद्धिजीवी अपने भविष्य को लेकर चिंतित हो गए हैं और अपने ग्रह (पृथ्वी) को बचाने के प्रयासों में लग गए हैं। सबसे पहले इस बात की ओर हमें अपना ध्यान इंगित करना पड़ेगा कि आज पूरे विश्व को बचाने और संरक्षण की स्थिति क्यों उत्पन्न हो गयी ? जैसा कि हम जानते हैं कि प्रारम्भिक मानव वनों में रहता था और वनोत्पाद ग्रहण करता था। वह प्रकृति का सम्मान करता था और उसके प्रकोपों से भयभीत भी रहता था। अतः वह ऐसे प्रयासों से डरता था जिससे प्रकृति और प्राकृतिक चीजों को नुकसान पहुंचे। अतः उस समय पर्यावरण अशुद्धियों और प्रदूषण का शिकार नहीं था , लेकिन कालांत

स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा धन है।

स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा धन है। मानव के लिए अच्छे स्वास्थ्य से बढ़कर कुछ नहीं। स्वास्थ्य अच्छा हो तो सब कुछ अच्छा लगता है , हर कार्य में मन लगता है और हम अपने हर कार्यकलाप में आनंद ले पाते हैं। स्वास्थ्य की महत्ता से हर व्यक्ति परिचित है , इसलिए वह स्वस्थ रहने के लिए हर प्रकार के उपाय करता है। हम स्वस्थ रहने के लिए नियमित व्यायाम और अपने खान-पान में सतर्कता बरतते हैं। जो लोग अपने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही बरतते हैं वो बीमार पड़ते हैं अथवा किसी दुर्घटना के शिकार हो सकते हैं। अपने स्वास्थ्य की महत्ता को समझकर स्वस्थ तरीकों को अपनाने वाले दीर्घायु और प्रसन्नचित्त होते हैं। हमारे पास ढेरों धन-संपत्ति हो और नौकर-चाकर हो , खुशी का उत्सव हो लेकर हम अस्वस्थ हों तो वो सारी खुशियाँ हमारे लिए निरर्थक साबित हो सकती हैं। हम इन खुशियों और धन-संपत्ति का वास्तविक आनंद लेने से वंचित हो जाते हैं। स्वस्थ रहने के लिए अनेक प्रकार के उपाय किए जाते हैं। बच्चों को विद्यालय स्तर से शारीरिक शिक्षा प्रदान की जाती है ताकि वे स्वस्थ रहने के महत्व से परिचित हो। बच्चों को व्यायाम और सुपाच्य तथा स्व

झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई

झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई §   परिचय –   झाँसी की रानी और 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगना §   जन्म-   वाराणसी  ( काशी ) में 19  November 1835 में. §   उपनाम-   मणिकर्णिका , मनु , छबीली. §   माता-   भागीरथी बाई. §   पिता-   मोरोपंत तांबे. §   माता की मृत्यु-   मनु जब 4 वर्ष की थीं. §   शिक्षा-   शास्त्र और शस्त्र. §   विवाह-   1842 में   झाँसी के राजा गंगाधर राव निवालकर के साथ. §   संतान-   1851 में रानी ने दामोदर राव को जन्म दिया , पर 4 महीने की आयु में ही उसकी मृत्यु हो गयी. §     दत्तक पुत्र-     रानी ने आनंद राव को गोद लिया , आनंद राव का नाम बाद   में दामोदर राव दिया गया. §     पति की मृत्यु-  21 November 1853.   अंग्रेज और झाँसी §       राज्य हड़पने की नीति-   अंग्रेजों  ने दामोदर राव को झाँसी का   उत्तराधिकारी मानने से इन्कार कर दिया. §   मार्च 1854 में , लक्ष्मीबाई को  60,000 रुपए पेंशन प्रस्ताव दिया गया और महल तथा  झांसी किला   छोड़ने का आदेश दिया. §     आर्थिक समस्या-   अंग्रेजों  ने राज्य का खजाना ज़ब्त कर लिया §     किला-