विद्या सबसे बड़ा धन है ।

विद्या सबसे बड़ा धन है ।
************************

विद्या को सबसे बड़ा धन माना गया है। मानव को सभी जीव जन्तुओ में सर्वोत्तम माना गया है क्योंकि मानव ने अपने विद्या और बुद्धि के बल पर प्रकृति को अपने वश में कर रखा है। विद्या का ही परिणाम है कि हम अपने विवेक का प्रयोग कर आसानी से जीवन निर्वहन कर पा रहे हैं। संसार में इसी कारण मानव को सर्वश्रेष्ठ माना गया है।

जब तब मानव विद्या से वंचित होता है, उसका जीवन पशु सदृश होता है। मानव जीवन में हम जन्म के साथ ही विभिन्न स्थितियों में विद्या ग्रहण करते हैं। प्रारम्भिक अवस्था में शिशु अपने माता-पिता से जीवन के संस्कार और बोलना सीखता है। इसके पश्चात उसे विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजा जाता है और इसके उपरांत उच्चतर संस्थानों में वे प्रवेश लेते हैं। ये सारा प्रक्रम मानव में विद्या को समाहित करने के लिए किया जाता है। पहले अपने परिवार में और फिर शिक्षण संस्थानों में हम जीवन के बहुत सी बातें सीखते हैं। लिखना, पढ़ना और तकनीकी बातों का ज्ञान मनुष्य को चिंतनशील और प्रखर बनाता है। इस प्रकार मानव मस्तिष्क विद्या को ग्रहण कर परिस्थितियों के अनुरूप जीने की कला सीख जाता है।

इतिहास साक्षी है कि जिसने भी विद्या को सर्वोत्तम रूप में चुना और उसका अनुकरण किया वो इतिहास में अमिट छाप छोड़ने में सफल रहा। कालीदास इसी के बल पर एक महान कवि और लेखक के रूप में प्रख्यात हुआ। विद्या को ऐसा धन माना गया है जो जितना खर्च किया जाये उतना बढ़ता है, जो इसका प्रचार प्रसार नहीं करता और इसे संचित रखता है उसकी विद्या नष्ट हो जाती है। इसलिए विद्या पर ये श्लोक चरितार्थ होते हैं :-

विद्या ददाति विनयम, विनायत याति पात्रताम ।
पात्रत्वात धनमाप्नोती धनात धर्मं ततः सुखम ॥

इसका अर्थ है कि विद्या विनय देती है, विनय से पात्रता आती है।  पात्रता से धन और धन से धर्म तथा सुख की प्राप्ति होती है।।  

विद्या नाम नरस्य रूपमधिकम प्रच्छन्न्गुप्तम धनम, विद्या भोगकारी यशः सुखकरी विद्या गुरुणाम गुरुः ।
विद्या बंधुजनों विदेशगमने विद्या परम दैवतम, विद्या राजसु पूज्यते न ही धनम विद्याविहीन पशु     । ।

इसका अर्थ है की विद्या मनुष्य का विशिष्ट रूप है, गुप्त धन है। वह भोग देने वाली, यशदातरी, और सुखकारक है। विद्या गुरुवो का गुरु है, विदेश में वह मनुष्य का भाई के समान है। विद्या सबसे बड़ा देवता है। विद्या राजाओं में पूजी जाती है, धन नहीं। इसलिए विद्या विहीन पशु के समान है।
अतः हम कह सकते हैं कि हमें पूरे जीवन भर कहीं से भी अच्छी विद्या प्राप्त होती है तो उसे सीखने पर ध्यान देना चाहिए। यह हमारे, हमारे परिवार और समाज के लिए हितकारी हो सकता है।



Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

विद्यालय का वार्षिकोत्सव

साँच बराबर तप नहीं, न झूठ बराबर पाप ?