साँच बराबर तप नहीं, न झूठ बराबर पाप ? *********************************** यह सूक्ति निर्गुण भक्ति मार्गी कवि कबीरदास जी ने कही है कि सच्चाई से बढ़कर कोई तपस्या नहीं है। इस सूक्ति पर गम्भीरतापूर्वक विचार करना आवश्यक है कि सच्चाई के समान या सच्चाई से बढ़कर कोई तपस्या नहीं है , तो कैसे और क्यों नही है ? सबसे पहले हमें सच्चाई का स्वरूप , अर्थ और प्रभाव को समझना होगा। सच्चाई का शाब्दिक अर्थ है- सत्य का स्वरूप या सत्यता। सत्य का स्वरूप क्या है और क्या हो सकता है , यह भी विचारणीय है। सच्चाई शब्द या सच शब्द का उद्भव संस्कृत के सत शब्द में प्रत्यय लगा देने से बना है। यह सत्य शब्द संस्कृत का शब्द अस्ति के अर्थ से हैं , जिसका अर्थ क्रिया से है। अस्ति क्रिया का अर्थ होता है। इस क्रियार्थ को एक विशिष्टि अर्थ प्रदान किया गया कि जो भूत , वर्तमान और भविष्य में भी रहे या बना रहे , वही सत्य है। सत्य का स्वरूप बहुत ही विस्तृत और महान होता है। सत्य के सच्चे स्वरूप का ज्ञान हमें तब हो सकता है , जब हम असत्य का ज्ञान प्राप्त कर लें। असत्य से हमें क्या हानि होती है और असत्य हमारे लिए कितना निर्मम और...
I love (mo
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteI like this history of dowry published by you.......
ReplyDeleteवहुत अच्छा लिखा है
ReplyDeleteVery good article. Are you too assured not gaining dowry at the time of marriages in your family ,relatives and society .If not then article is ............!!!!
ReplyDeleteVery good article. Are you too assured not gaining dowry at the time of marriages in your family ,relatives and society .If not then article is ............!!!!
ReplyDeleteShort and sweet✌️
ReplyDeletenice article
ReplyDelete