हमारे ग्रह (पृथ्वी) को सबसे बड़ा खतरा हमारी इस मानसिकता से है कि कोई और इसे बचा लेगा ।

हमारे ग्रह (पृथ्वी) को सबसे बड़ा खतरा हमारी इस मानसिकता से है कि कोई और इसे बचा लेगा ।
 


लगातार बढ़ते प्रदूषण और मानवीय हस्तक्षेपों ने आज पूरे विश्व के अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न कर दिया है। इस संभावित खतरे के लिए हम सम्पूर्ण मानव जाति ज़िम्मेवार हैं। मानव के प्रकृति और प्राकृतिक क्षेत्र में अत्यधिक हस्तक्षेप ने पूरे विश्व का कायाकल्प कर दिया है। पूरा विश्व अपना नैसर्गिक सौंदर्य और संतुलन खोने लगा है। इस विकट परिस्थिति में आज हम मानव और देश के बुद्धिजीवी अपने भविष्य को लेकर चिंतित हो गए हैं और अपने ग्रह (पृथ्वी) को बचाने के प्रयासों में लग गए हैं।

सबसे पहले इस बात की ओर हमें अपना ध्यान इंगित करना पड़ेगा कि आज पूरे विश्व को बचाने और संरक्षण की स्थिति क्यों उत्पन्न हो गयी?

जैसा कि हम जानते हैं कि प्रारम्भिक मानव वनों में रहता था और वनोत्पाद ग्रहण करता था। वह प्रकृति का सम्मान करता था और उसके प्रकोपों से भयभीत भी रहता था। अतः वह ऐसे प्रयासों से डरता था जिससे प्रकृति और प्राकृतिक चीजों को नुकसान पहुंचे। अतः उस समय पर्यावरण अशुद्धियों और प्रदूषण का शिकार नहीं था, लेकिन कालांतर में नयी-नयी बस्तियाँ और नगर बसने लगे। इन सब के कारण वनों को काटा गया। लोगों ने अपने आवश्यकता की पूर्ति के लिए धड़ल्ले से वनों का दोहन किया, आज भी ये क्रम जारी है। मनुष्य को किसी भी कीमत पर विकास चाहिए था, इसका खामियाजा प्रकृति को झेलना पड़ा। मनुष्य ने बांध बनाए, सड़कें बनाई, रेल लाइन बिछाई और बड़े-बड़े आवासीय परिसरों का निर्माण किया। ये सारे विकास प्रकृति की कीमत पर हुआ और आज भी प्रकृति का दोहन जारी है।

प्रकृति के इस अत्यधिक दोहन और हस्तक्षेप ने आज सभी बुद्धिजीवियों, वैज्ञानिकों और हमें ये सोचने पर विवश कर दिया है कि यदि हम इसी प्रकार से विनाशलीला रचते गए तो निकट भविष्य में हमारा अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। अतः सभी ने पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान देना शुरू कर दिया है।

पर्यावरण संरक्षण के प्रयास में वृक्षारोपण को सर्वाधिक महत्व दिया गया है और पूरे विश्व में लोग इसके प्रति जागरूक हो रहे हैं। हालांकि ऐसे प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन लोगों की मानसिकता के कारण इसे पर्याप्त सफलता नहीं मिल रही है। हमारी सोच ये हो गयी है कि पर्यावरण संरक्षण संबंधी कार्य सरकार और स्वयंसेवी संस्थाओं का है, जिसके कारण हम इसमें न तो सक्रिय भागीदारी दे पाते हैं और न तो हमारी रुचि ही होती है। आज के युवा थोड़े सजग तो हैं पर वे भी सोशल वैबसाइट जैसे फेसबूक और ट्विटर पर अपनी सक्रियता ज्यादा दिखा रहे हैं। विद्यालयों में जरूर थोड़ी जागरूकता फैलाने का प्रयास किया जा रहा है फिर भी उनके प्रयास मरुस्थल में एक बाल्टी पानी डालने के समान है, जिसकी सार्थकता उतनी नहीं रह जाती।

हम अपने दायित्वों का निर्वहन भलीभाँति नहीं कर पा रहे हैं। हम अपनी आवश्यकताओं पर कटौती से ही घबरा जाते हैं। आज एयर कंडीशनर और रेफ्रीजरेटर के इस्तेमाल में धड़ल्ले से वृद्धि हुई है। वाहनों का तो शैलाव उमड़ पड़ा है। ये सभी प्रदूषण को बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। एयर कंडीशनर और रेफ्रीजरेटर से जहां बड़ी मात्रा में क्लोरो-फ़्लोरो कार्बन वातावरण में पहुँच रहा है वहीं वाहनों की बढ़ती संख्या ने कार्बन-डाइ-ऑक्साइड, कार्बन-मोनो-ऑक्साइड और सल्फर डाइ-ऑक्साइड जैसे विषाक्त गैसों को पूरे वायुमंडल में फैलाने का कार्य किया है। इन गैसों से ओज़ोन परत प्रभावित हो रही है लेकिन इसका परिणाम हमें भी भुगतना पड़ रहा है। आज लोग त्वचा संबंधी अनेक बीमारियों से ग्रसित हैं। बढ़ते प्रदूषण ने कैंसर, दमा और बेचैनी जैसी अनेक बीमारियों को जन्म दिया है।

मानवीय प्रयास नाकाफी है जो हमारे ग्रह को बचाने के लिए किए जा रहे हैं। हम मानवों को अपने सीमित मानसिकता से बाहर निकालना होगा और ये सोचना होगा कि यदि हमें अपने ग्रह ( पृथ्वी) को बचाना है तो दूरगामी प्रयास करना है। यहाँ मैं कुछ प्रयासों पर आपका ध्यान आकृष्ट करना चाहता हूँ :-
(1)     हमें प्लास्टिक और वैसे पदार्थ जो पर्यावरण पर दुष्प्रभाव डालते हैं के प्रयोग को तत्काल से रोकना होगा ताकि आने वाले समय में ये पर्यावरण को और नुकसान नहीं पहुंचाए।
(2)     हमें पेट्रोल और डीजल चालित वाहनों के बजाय सीएनजी, सोलर अथवा बैटरी से चालित वाहनों के प्रयोग पर ध्यान देना होगा। पेट्रोलियम अत्यधिक प्रदूषण फैलाते हैं। अतः उपरोक्त विकल्पों के प्रयोग से प्रदूषण पर नियंत्रण रखा जा सकेगा।
(3)     हमें पर्यावरण सुलभ अर्थात जैव निम्नीकरणीय संसाधनों का प्रयोग करना होगा, ताकि इससे मिट्टी की गुणवत्ता प्रभावित न हो और मिट्टी में विषाक्त पदार्थों की आवाजाही को रोका जा सके।
(4)     हमें वृक्षारोपण को अपने दैनिक कार्यक्रमों तथा उत्सवों का हिस्सा बनाना होगा, ताकि जब भी कोई उत्सव हो हम पेड़ लगाएँ इससे पृथ्वी निकट भविष्य में फिर से हरी भरी हो सकेगी। इसके साथ ही वृक्षों के कटाई पर प्रतिबंध को कड़ाई से लागू करना होगा ताकि लोग पेड़ काटने से भयभीत हो। यदि कोई 1 पेड़ काटता है तो उसे इसके एवज में 10 पेड़ लगाना होगा ऐसा आदेश पारित किया जाना चाहिए।
(5)     जो उद्योग धंधे प्रदूषण फैलाते हों तो उन्हें तत्काल से बंद कर देना चाहिए अथवा उसका कोई विकल्प तलाशना चाहिए ताकि प्रदूषण को कम किया जा सके।
(6)     विकसित और विकासशील देशों को हथियारों के प्रतिस्पर्धा पर लगाम लगाना होगा। इनके परीक्षण और प्रयोग से सर्वाधिक प्रदूषण फैलता है। अमेरिका द्वारा जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए जाने के 71 वर्ष पूरे हो चुके हैं, बावजूद इसका विकिरण और दुष्प्रभाव वहाँ रहने वाले लोगों को झेलना पड़ रहा है। परमाणु संयन्त्रों से विकिरण का खतरा हमेशा बना रहता है, अतः इसपर रोक लगना चाहिए।

उपरोक्त विकल्पों और तरीकों को अपना कर हम प्रदूषण को नियंत्रित कर सकते हैं। आज हमें सोचना होगा कि प्रदूषण को रोकना सरकार और सामाजिक तथा पर्यावरण-संबंधी संस्थाओं की ही जिम्मेवारी नहीं है। यह हर नागरिक का परम कर्तव्य है को वह ऐसे गतिविधियों से दूर रहे जो प्रदूषण का कारण हैं। परिवार में बुजुर्गों का दायित्व है कि वे अपने बच्चों और छोटों को सही ज्ञान दे। उन्हें बताना चाहिए कि यदि पर्यावरण सुरक्षित रहेगी तभी हमारा पृथ्वी भी बच पाएगा। हमें ऐसा कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए जो पर्यावरण को क्षति पहुँचाते हो। सभी देश विश्व को बचाने के लिए हर वर्ष शिखर सम्मेलन करते हैं, लेकिन हथियारों के इस्तेमाल और उत्पादन पर विराम नहीं लगाते। जब तक अमेरिका, चीन, जापान, रूस, इस्राइल, फ़्रांस आदि जैसे देश हथियारों की होड़ से दूर नहीं होते तो पृथ्वी को बचाने की हमारी सोच, सोच ही रह जाएगी क्योंकि पूरा विश्व तीसरे विश्व युद्ध के दरवाजे पर खड़ा है और ये कहने में तनिक भी अत्योशक्ति नहीं होगी कि यदि तीसरा विश्व युद्ध हुआ तो पृथ्वी का सर्वनाश निश्चित है।

कुल शब्द संख्या: 1081



Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

विद्या सबसे बड़ा धन है ।

विद्यालय का वार्षिकोत्सव

साँच बराबर तप नहीं, न झूठ बराबर पाप ?