हिंदी के सर्वश्रेष्ठ कवि: तुलसीदास अथवा मेरा प्रिय कवि: तुलसीदास पर निबंध
हिंदी के सर्वश्रेष्ठ कवि:
तुलसीदास अथवा मेरा प्रिय कवि: तुलसीदास पर निबंध
भारतवर्ष में समय-समय पर
धर्म, विज्ञान
एवं साहित्य आदि क्षेत्र में महान विद्वानों व साहित्यकारों ने जन्म लिया है । ये
भारतीय इतिहास का गौरव रहे हैं और इन पर भारत सदैव गौरवान्वित रहेगा ।
जायसी, सूर, तुलसी, भारतेंदु, हरिश्चंद, दिनकर, मैथिलीशरण गुप्त, महान उपन्यासकार प्रेमचंद
आदि देश के महान कवियों एवं साहित्यकारों में गिने जाते हैं । इनमें कविवर
तुलसीदास मुझे सर्वश्रेष्ठ कवि लगते हैं क्योंकि भगवान श्रीराम के शील, सौंदर्य व भक्ति का जो
समन्वित तथा सगुण रूप तुलसीदास ने प्रस्तुत किया है वह अद्वितीय है ।
युग-युगांतर तक उनकी यह
काव्यमयी वाणी भारतभूमि पर अमृत वर्षा करती रहेगी और लोगों के धार्मिक एवं सामाजिक
जीवन में नई जागृति व स्कूर्ति का संचार करती रहेगी । तुलसीदास जी भक्तिकाल की
राम-भक्ति शाखा के प्रमुख कवि हैं । इनका जन्म 1532 ई॰ में उत्तर प्रदेश के एटा
जिले के सोरो ग्राम में हुआ था ।
इनकी माता का नाम हुलसी तथा
पिता का नाम आत्माराम दुबे था । इनका लालन-पालन एक दासी के द्वारा हुआ क्योंकि
अयुक्तमूल नक्षत्र में पैदा होने के कारण बचपन से ही उनके माता-पिता ने तुलसी का
परित्याग कर दिया था । बचपन में मुख से राम निकलने के कारण इनका नाम ‘राम बोला’ रखा गया था ।
तुलसी को शिक्षा-दीक्षा
बाबा नरहरिदास से मिली । 15 वर्ष तक वेदांत का अध्ययन करने के उपरांत उनका विवाह रत्नावली नामक
रूपवती कन्या से हुआ । पत्नी प्रेम में मोहित तुलसी को एक पल का विरह अखरता था ।
कालातर में पत्नी के कठोर
वचनों से ही उनमें वैराग्य उत्पन्न हुआ । इसके बाद ही उन्हें ‘राम’ में आसक्ति हुई और फिर शेष
जीवन काशी, अयोध्या
और चित्रकूट में व्यतीत हुआ । सन् 1623 ई॰ में ‘राम’ की अनन्य भक्ति में लीन
तुलसी अमरत्व को प्राप्त हो गए ।
इनकी मृत्यु के संदर्भ में निम्नलिखित दोहा प्रसिद्ध है:
”सवंत सोलह सौ असी, असी गंग के तीर । श्रावण शुक्ल सप्तमी, तुलसी तज्योशरीर ।”
काव्य की दृष्टि से
तुलसीदास जी के काव्य में भाव एवं कला दोनों ही पक्ष अत्यंत उच्च कोटि के हैं ।
अन्य रसों के साथ ही साथ भक्तिरस की जो अद्भुत धारा तुलसी के काव्य में देखने को
मिलती है वह अद्वितीय है । इसके अतिरिक्त इनके काव्य में वस्तु-विन्यास, दार्शनिकता, नारी-भावना, प्रकृति-चित्रण, लोक-मर्यादा, बौद्धिकता आदि का बड़ा ही
सुंदर समन्वय देखने को मिलता है । तुलसी की रचनाओं में भक्ति दास्य भाव प्रधान है
।
उन्होंने अपने आराध्य की महानता को शिखर पर देखा है तथा स्वयं को अतिदीन–हीन और अति तुच्छ भक्त माना है: ‘राम सौ बड़ो है कौन, मोसौ कौन छोटो ।‘
तुलसी के काव्य में अद्भुत
लालित्य व माधुर्य देखने को मिलता है । इसके अतिरिक्त कर्म और ज्ञान की जो धारा
इनके वाक्य में दृष्टिगोचर होती है वह अलौकिक तथा समस्त प्राणियों का दु:ख-संताप
हरने वाली है । तुलसीदास जी के काव्य में भाव पक्ष के साथ ही साथ कला पक्ष अत्यंत
सुदृढ़ व सुसंगठित है ।
इसमें अलंकारों, छंदों व संवादों आदि का अद्भुत
सम्मिश्रण है । इनकी भाषा-शैली, वस्तु-वर्णन आदि उच्चकोटि का है । तुलसीदास जी की रचनाओं
में अवधी तथा ब्रजभाषा का बाहुल्य देखने को मिलता है । गोस्वामी तुलसीदास हिंदी
साहित्य जगत के उन जगमगाते नक्षत्रों में से एक हैं जिनके साहित्य ज्ञान का प्रकाश
युग-युगांतर तक जनमानस को अंधकार (पाप) से मुक्ति दिलाता रहेगा ।
उनके साहित्य के महत्व का मूल्यांकन करते हुए किसी कवि ने लिखा है:
”सूर सूर तुलसी ससि उडुगन केशवदास । अब के कवि खद्योत सम जहँ तहँकरत प्रकास ।।”
तुलसीदास मूलत: भक्तियुग की
सगुण धारा के कवि थे परंतु उनके काव्य में निर्गुण-सगुण दोनों का ही समन्वय देखने
को मिलता है । इसके साथ ही साथ ज्ञान और भक्ति, भाव-भाषा और शैली, छंद-अलंकार आदि का उनके
काव्य में महान समन्वय उन्हें लोकनायक के पद पर विराजमान करता है । वे सच्चे
अर्थों में साहित्य जगत के सर्वश्रेष्ठ कवियों में से एक थे ।
कवि हरिऔध जी ने सत्य ही लिखा है:
”कविता करके तुलसी न लसे, कविता लसी पा तुलसी की कला ।”
सचमुच तुलसीदास अपनी भक्ति
के अतिरिक्त अपने ज्ञान, अपनी
दक्षता के मामले में भी अद्वितीय कहे जा सकते हैं । आज तक हिंदी साहित्य जगत् में
उनकी जोड़ का दूसरा कवि नहीं हुआ जो पूरे हिंदुस्तान में इतना प्रभाव अपने साहित्य
के माध्यम से छोड़ पाया हो । लोग अपने दैनिक जीवन की समस्याओं का निराकरण उनकी
कविताओं के माध्यम से हर युग में करते रहेंगे ।
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