बदलते भारत में महिलाओं की भूमिका

बदलते भारत में महिलाओं की भूमिका

विश्व तेजी से बदल रहा है, ऐसे में भारत में बदलाव कोई नई बात नहीं होगी। इस बदलते युग में किसी भी क्षेत्र में महिलाओं की सहभागिता पुरुषों से कमतर आंकना संभव नहीं है। महिलाओं ने अपनी प्रतिभा और कौशल से पूरे विश्व के लोगों को अपना मुरीद बना लिया है। इन सब का ही परिणाम है कि भारत जैसे विकाशसील देश में महिलाओं की भूमिका और उपयोगिता को समझा जाने लगा है।

हमारा देश प्राचीन काल से ही विश्वगुरु के रूप में प्रतिस्थापित है और अपनी सभ्यता-संस्कृति के लिए पूरे विश्व पटल पर अपनी छाप बनाए रखा है। हमारे देश में महिलाओं की भूमिका को समझने के लिए हमें अतीत के पन्नों को पलटना होगा। मैं इसे काल क्रम के माध्यम से समझाने का प्रयास कर रहा हूँ:-

(i)       वैदिक युग : इस युग में महिलाओं की स्थिति आज की महिलाओं की अपेक्षा अत्यंत सुदृढ़ थी। महिलाओं को समाज में भरपूर आदर और सम्मान प्राप्त था। महिलाओं की सामाजिक भागीदारी थी। इन्हें पुरुषों के समान शिक्षा प्राप्त करने का भी अधिकार था। सभा समितियों में से स्वतंत्रतापूर्वक भाग लेती थी तथापि ऋगवेद में कुछ ऐसी उक्तियां भी हैं जो महिलाओं के विरोध में दिखाई पड़ती हैं। मैत्रयीसंहिता में स्त्री को झूठ का अवतार कहा गया है। ऋगवेद का कथन है कि स्त्रियों के साथ कोई मित्रता नही है, उनके हृदय भेड़ियों के हृदय हैं। ऋगवेद के अन्य कथन में स्त्रियों को दास की सेना का अस्त्र-शस्त्र कहा गया है। स्पष्ट है कि वैदिक काल में भी कहीं कहीं स्त्रियाँ नीची दृष्टि से देखी जाती थीं। फिर भी हिन्दू जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में वह समान रूप से आदर और प्रतिष्ठित थीं। शिक्षा, धर्म, व्यक्तित्व और सामाजिक विकास में उसका महान योगदान था।
(ii)      उत्तर वैदिक काल: संस्थानिक रूप से स्त्रियों की अवनति उत्तर वैदिककाल से शुरू हुई। उन पर अनेक प्रकार के निर्योग्यताओं का आरोपण कर दिया गया। उनके लिए निन्दनीय शब्दों का प्रयोग होने लगा। उनकी स्वतंत्रता और उन्मुक्तता पर अनेक प्रकार के अंकुश लगाये जाने लगे। यह भी कहा जा सकता है कि यही वह समय था जिसके उपरांत महिलाओं को कभी पुरुषों के समान बराबरी का हक नहीं मिला।
इन सब के बावजूद वैदिक वैदिक एवं उत्तर वैदिक काल में महिलाओं को गरिमामय स्थान प्राप्त था। उसे देवी, सहधर्मिणी अर्द्धांगिनी, सहचरी माना जाता था। स्मृतिकाल में भी ''यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता'' कहकर उसे सम्मानित स्थान प्रदान किया गया है। पौराणिक काल में शक्ति का स्वरूप मानकर उसकी आराधना की जाती रही है।

(iii)     सल्तनत काल: सल्तनत काल से पूर्व भारत भूमि में महिलाओं की भूमिका और स्थिति में आश्चर्यजनक परिवर्तन आया। मध्य एशियाई और विदेशी विचारों से महिलाओं की स्थिति बिगड़ती गई। इन्होने सामन्ती व्यवस्था, केन्द्रीय सत्ता का विनष्ट होना, विदेशी आक्रमण और शासकों की विलासितापूर्ण प्रवृत्ति ने महिलाओं को भोग की वस्तु बना कर रख दिया, इस कारण से महिलाएं प्रताड़ित की जाने लगी। यही वह समय था जब देश का इस्लामिकरण शुरू हुआ और परिणामस्वरूप महिलाओं पर अनेक प्रतिबंध लगा दिये गए। मुस्लिम महिलाओं को सबसे अधिक बन्दिशों में बाँध दिया गया।
(iv)     मुगल काल : मुगल काल में महिलाओं की स्थिति बिगड़ती गयी। एक तरह से यह महिलाओं के सम्मान, विकास, और सशक्तिकरण का अंधकार युग था। मुगल शासन में इस्लाम का भरपूर प्रचार-प्रसार हुआ जिससे बड़े पैमाने पर धर्मांतरण हुआ। इसी समय बाल विवाह, पर्दा प्रथा, अशिक्षा आदि विभिन्न सामाजिक कुरीतियों का हिन्दू समाज में  और इसला के प्रचार-प्रसार से बुर्का प्रथा, तीन-तलाक आदि का प्रवेश हुआ, जिसने महिलाओं की स्थिति को हीन बना दिया तथा उनके निजी सामाजिक जीवन को कलुषित कर दिया। मुगल शासकों में अकबर के अतिरिक्त किसी भी शासक ने महिलाओं को उच्च स्थान दिलाने का प्रयास नहीं किया अपितु कुछ उच्च वर्ग की मुस्लिम महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी रही, नूरजहां, रुकाईया बेगम, नुसरत बानो आदि।
(v)      आधुनिक काल : आधुनिक काल एक बार फिर महिलाओं की स्थिति को सुधारने में कारगर रहा। आर्य समाज, ब्रह्म समाज, थियोसोफ़िकल सोसाइटी आदि समाज-सेवी संस्थाओं ने नारी शिक्षा आदि के लिए प्रयास आरम्भ किये। उन्नीसवीं सदीं के पूर्वार्द्ध में भारत के कुछ समाजसेवियों जैसे राजाराम मोहन राय, दयानन्द सरस्वती, ईश्वरचन्द विद्यासागर, गोविंद रानाडे तथा केशवचन्द्र सेन ने अत्याचारी सामाजिक व्यवस्था के विरूद्ध आवाज उठायी। इन्होंने तत्कालीन अंग्रेजी शासकों के समक्ष स्त्री पुरूष समानता, स्त्री शिक्षा, सती प्रथा पर रोक तथा बहु विवाह पर रोक की आवाज उठायी। इसी का परिणाम था सती प्रथा निषेध अधिनियम ,1829,1856 में हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम,1891 में एज आफ कन्सटेन्ट बिल ,1891 , बहु विवाह रोकने के लिये वेटिव मैरिज एक्ट पास कराया। इन सभी कानूनों का समाज पर दूरगामी परिणाम हुआ। वर्षों के नारी स्थिति में आयी गिरावट में रोक लगी। आने वाले समय में स्त्री जागरूकता में वृद्धि हुई ओैर नये नारी संगठनों का सूत्रपात हुआ जिनकी मुख्य मांग स्त्री शिक्षा, दहेज, बाल विवाह जैसी कुरीतियों पर रोक, महिला अधिकार, महिला शिक्षा का माँग की गई। इन प्रयासों से मुख्य रूप से हिन्दू धर्म में अनेक कुरीतियों को मिटाने में सफलता मिली। ब्रिटिश शासन की अवधि में हमारे समाज की सामाजिक आर्थिक संरचनाओं में अनेक परिवर्तन किए गए। ब्रिटिश शासन के 200 वर्षों की अवधि में स्त्रियों के जीवन में प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष अनेक सुधार आये। औद्योगीकरण, शिक्षा का विस्तार, सामाजिक आन्दोलन महिला संगठनों का उदय सामाजिक विधानों ने स्त्रियों की दशा में बड़ी सीमा तक सुधार की ठोस शुरूआत की।
(vi)     स्वतन्त्रता के पश्चात की स्थिति: देश के आजाद होने के बाद से भारत सरकार ने अनेक कानून पास किए हैं, जिनके परिणामस्वरूप महिलाओं को अनेक अधिकार मिले हैं। दशक दर दशक सरकारों ने महिलाओं के बेहतरी के लिए अनेक अधिनियम पास किए है। सरकारी नियुक्तियों में महिलाओं के लिए पद आरक्षित किए जा रहे हैं। सार्वजनिक स्थानों तथा वाहनों में महिलाओं के लिए विशेष व्यवस्था प्रदान किए जा रहे हैं। हमारी सरकार महिलाओं को शिक्षित करने के प्रति सजग है और हाई स्कूल तक की लड़कियों को निःशुल्क शिक्षा का प्रबंध कर रही हाई। सरकार ने अनेक योजनाएँ महिलाओं को ध्यान में रखकर शुरू किए हैं। लाड़ली योजना, प्रधानमंत्री सुकन्या योजना, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना, दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्या योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान, महिला उद्यमियों के लिए स्टार्टअप योजना, मुस्लिम लड़कियों के लिए शादी शगुन योजना आदि को शुरू करने के पीछे सरकार की यही मंशा रही है कि अधिक से अधिक महिलाएं लाभान्वित हो।

इस प्रकार आज के आधुनिक युग में महिलाओं की स्थिति दिन--दिन अच्छी होती जा रही है। आज की महिलाएं कहीं से भी पुरुषों से कम नहीं है, इसी का परिणाम है कि अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों के कंधा में कंधा मिला कर कार्य कर रही हैं। शिक्षा के क्षेत्र में महिलाएं परचम लहरा रही हैं। पुरुषों के अपेक्षाकृत महिलाओं में शिक्षा के प्रति अधिक अभिरुचि रही है इससे इनके सफलता का प्रतिशत बढ़ता ही जा रहा है। पहले महिला और पुरुष में भेदभाव देखा जाता था, लेकिन आज की परिस्थिति में महिलाओं को अनेक अधिकार मिला है। महिलाएं स्वच्छंदता से विचरण कर सकती हैं। आज की महिलाएं पुरुषों के समान परिवार के हर कार्य में हाथ बंटा रही है। देश की लड़कियां डॉक्टर, अभियंता, वैज्ञानिक, शिक्षक और व्यापारियों के रूप में पूरे विश्व में भारत का नाम रोशन कर रही हैं। कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स ने नासा के लिए काम करके अन्तरिक्ष में अपनी धाक जमाई है। खेल के क्षेत्र में चाहे क्रिकेट हो अथवा फूटबाल अथवा पुरुष प्रधान माने जाने वाले कुश्ती हर जगह महिलाएं पुरुषों से खुद को बेहतर करने में लगी हैं। पी वी सिंधु और साइना नेहवाल ने बैडमिंटन में देश को गौरान्वित किया है। तीरंदाजी, शतरंज, टेनिस, तैराकी आदि खेलों में भी महिलाएं आशान्वित प्रगति कर रही हैं।

इस सन्दर्भ में युगनायक एवं राष्ट्रनिर्माता स्वामी विवेकानन्द का यह कथन उल्लेखनीय है- ''किसी भी राष्ट्र की प्रगति का सर्वोत्तम थर्मामीटर है, वहाँ की महिलाओं की स्थिति। हमें नारियों को ऐसी स्थिति में पहुँचा देना चाहिए, जहाँ वे अपनी समस्याओं को अपने ढंग से स्वयं सुलझा सकें। हमें नारीशक्ति के उद्धारक नहीं, वरन् उनके सेवक और सहायक बनना चाहिए। भारतीय नारियाँ संसार की अन्य किन्हीं भी नारियों की भाँति अपनी समस्याओं को सुलझाने की क्षमता रखती हैं। आवश्यकता है उन्हें उपयुक्त अवसर देने की। इसी आधार पर भारत के उज्ज्वल भविष्य की संभावनाएँ सन्निहित हैं।
अतः सरकारें ये बात जानती हैं कि देश तभी तरक्की कर सकता है जब महिलाओं को पुरुषों के समान ही अधिकार प्राप्त हों। महिला आरक्षण और राजनीति में 33% की भागीदारी की मांग लंबे समय से कि जा रही और और कुछ राज्यों ने इसे गंभीरता से लेकर लागू करने के प्रयास भी किए है। वर्तमान के देश की रक्षा मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमन  और विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज है । इन तरह दो महत्वपूर्ण मंत्रालय महिलाओं के हाथ में है जो एक नए परिवर्तन को दर्शाता है।

यह सत्य है कि वर्तमान समय में स्त्रियों की स्थिति में काफी बदलाव आए हैं, लेकिन फिर भी वह अनेक स्थानों पर पुरुष-प्रधान मानसिकता से पीड़ित हो रही है। पश्चिमी विचारधारा के संपर्क में आकर आज की महिलाएं आधुनिक हो गयी हैं। इनके पहनावे और रहन-सहन में भी उसी अनुरूप परिवर्तन आया है। आजकल महिलाओं के अपहरण, हत्या, बलात्कार तथा शारीरिक शोषण की घटनाएँ सुनने को मिल रही है। दिन--दिन इसमें बढ़ोतरी ही हो रही है। एक तरफ हम महिला सशक्तिकरण और आजादी में वृद्धि की बात करते हैं और महिलाओं के साथ बलात्कार, अपहरण और शारीरिक शोषण की घटनाएँ रुकने का नाम नहीं ले रही है। ऐसे में हमारा देश हमारा समाज किस दिशा की ओर जा रहा है ये एक चिंतनीय विषय है। हमारा समाज खुद को सभ्य कहता है और मानता है कि हम जागरूक हुए हैं और महिलाओं की प्रतिष्ठा के लिए लड़ने लगे हैं। लोगों की सोच तो बदल रही है लेकिन जिस अनुपात में इसके बढ्ने की कल्पना की जाती है वैसा हो नहीं पा रहा है। ग्रामीण क्षेत्र में ये स्थिति और चिंतनीय है।

अतः मेरा ये मानना है कि आज के बदलते परिदृश्य में हमें पश्चिमी देशों की भांति भारत देश को भी आगे बढ़ाना है तो महिलाओं की सुरक्षा संबंधी संसाधनों में बढ़ोतरी करनी होती ताकि महिलाएं स्वयं को आजाद भारत में आजाद महसूस कर सकें, अन्यथा हम कुछ भी प्रयास कर लें हमारे सारे प्रयास निरर्थक साबित होंगे।  

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