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Showing posts from June, 2018

फिजुलखर्ची

फिजूलखर्ची *********** फिलजूलखर्ची से तात्पर्य किसी अनावश्यक मद में पैसे खर्च करना है। यह एक ऐसा मद है जिसमें व्यक्ति बिना सोचे समझे धनराशि खर्च करता है। व्यक्ति अपने विवेक से काम लेना छोड़ कर भावना में बह जाता है। यह व्यक्ति को स्वार्थी और विवेहीन दर्शाता है। आज के युवा वर्ग में फिजूलखर्ची बहुत ही आम बात है। इसके लिए बहुत हद तक आज के अभिभावक भी ज़िम्मेवार हैं। खोखले दिखावे के चक्कर में अभिभावक अपने बच्चों की अनावश्यक मांगों को भी पूरा करने लगते है। अपने पास-पड़ोस में दूसरे लोगों को देखकर अभिभावक उन सामग्रियों को खरीदना शुरू कर देते हैं जिनकी उस समय कोई आवश्यकता नहीं होती। अभिभावकों के द्वारा इस प्रकार बच्चों में फिजूलखर्ची की भावना जगाई जाती है। दिखावे के चक्कर में अपने आर्थिक परिस्थिति को नज़र अंदाज कर अभिभावक चीजों को खरीदने लगते है। इस प्रकार बच्चों में पैसों की कीमत का महत्व कम हो जाता है। वे विद्यालयों और अन्य जगह कोई वस्तु जो उन्हें पसंद आती हो, उसकी मांग अपने अभिभावकों से शुरू कर देते है। कुछ अभिभावक यदि इन सब से दूर होना चाहते हैं तो बच्चे और अभिभावक स्वयं हीन-भावना के शिकार हो...

स्वच्छता भारत की जरूरत

स्वच्छता भारत की जरूरत स्वच्छता एक ऐसा मानवीय प्रयास है जो हमें साफ-सुथरा रहने को प्रेरित करता है। स्वच्छता हमें बीमारियों से परे रहने और स्वस्थ रखने में सहता करता है। भारत जैसे देश के परिप्रेक्ष्य में स्वच्छता अत्यंत महत्व रखता है। देश में स्वच्छता का माहौल नहीं है। लोगों में जागरूकता की कमी का खामियाजा हमें विदेशों में शर्मिंदगी झेलकर अदा करनी पड़ती है। इन सब कारणों से स्वच्छता भारत की जरूरत हो गयी है। हमारा देश भारत तेजी से विकास की ओर दौड़ रहा है। देश की जनसंख्या जिस कदर से बढ़ रही है उसमें शंका नहीं की 2025 तक यह चीन को प्रथम पायदान से हटकर खुद को वहाँ स्थापित कर लेगी। जनसंख्या के इस सैलाब के कारण संसाधनों का दोहन जिस प्रकार से हुआ है , वह देश के लिए एक चिंता का विषय हो गया है। इसका सीधा प्रभाव वातावरण पर पड़ रहा है। वातावरण अस्वच्छ होता जा रहा है। लोगों द्वारा धड़ल्ले से जैविक संसाधनों यथा पेट्रोलियम और कोयला तथा वाहनों आदि के प्रयोग से प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। लोगों में प्लास्टिक जैसे पदार्थों के प्रयोग से जल , स्थल और वायु तीनों प्रदूषित होते जा रहे हैं। अतः भारत जैसे दे...