फिजुलखर्ची
फिजूलखर्ची
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फिलजूलखर्ची से तात्पर्य किसी अनावश्यक मद में पैसे खर्च करना है। यह एक ऐसा मद है जिसमें व्यक्ति बिना सोचे समझे धनराशि खर्च करता है। व्यक्ति अपने विवेक से काम लेना छोड़ कर भावना में बह जाता है। यह व्यक्ति को स्वार्थी और विवेहीन दर्शाता है।
आज के युवा वर्ग में फिजूलखर्ची बहुत ही आम बात है। इसके लिए बहुत हद तक आज के अभिभावक भी ज़िम्मेवार हैं। खोखले दिखावे के चक्कर में अभिभावक अपने बच्चों की अनावश्यक मांगों को भी पूरा करने लगते है। अपने पास-पड़ोस में दूसरे लोगों को देखकर अभिभावक उन सामग्रियों को खरीदना शुरू कर देते हैं जिनकी उस समय कोई आवश्यकता नहीं होती। अभिभावकों के द्वारा इस प्रकार बच्चों में फिजूलखर्ची की भावना जगाई जाती है। दिखावे के चक्कर में अपने आर्थिक परिस्थिति को नज़र अंदाज कर अभिभावक चीजों को खरीदने लगते है। इस प्रकार बच्चों में पैसों की कीमत का महत्व कम हो जाता है। वे विद्यालयों और अन्य जगह कोई वस्तु जो उन्हें पसंद आती हो, उसकी मांग अपने अभिभावकों से शुरू कर देते है। कुछ अभिभावक यदि इन सब से दूर होना चाहते हैं तो बच्चे और अभिभावक स्वयं हीन-भावना के शिकार होते जाते हैं।
फिजूलखर्ची कहीं से भी सही नहीं है। लोग इसके चक्कर में अनावश्यक पैसे खर्च करते जाते हैं, जिसके फलस्वरूप आर्थिक हानि का भी शिकार होते हैं। बहुत सारे लोग कर्ज के बोझ में दबते जाते है। यदि कोई अभिभावक अपने घर में अथवा बच्चों में फिजूलखर्ची को रोकने की बात करते हैं, तो बच्चे मानसिक पीड़ा का अनुभव करते हैं। परिवार में कलह अपना घर करने लगता है। ऐसे अनेक घटनाएँ आए दिन अखबारों में छपते रहती हैं जिनमें बच्चों द्वारा गलत काम किए जाने के समाचार मिलते हैं। अभिभावकों और लोगों में अपने अनावश्यक जरूरतों को पूरा करने के लिए भ्रष्टाचार जन्म लेने लगता है। बच्चे मानसिक रूप से परिवार से दूर होने लगते हैं।
अतः फिजूलखर्ची को हमें नियंत्रित करना चाहिए और ऐसे तमाम मदों में खर्च करने से बचना चाहिए जिनका कोई औचित्य नहीं है। इस बचत से हम अपने परिवार और स्वयं के लिए और अच्छा कर सकते हैं। हम इस धनराशि का जरूरतमन्द बच्चों और लोगों में भी वितरित कर सकते हैं अथवा उनके लिए कुछ अच्छा कर सकते हैं, इससे वास्तव में इस धनराशि का सही प्रयोग सुनिश्चित हो पाएगा।
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फिलजूलखर्ची से तात्पर्य किसी अनावश्यक मद में पैसे खर्च करना है। यह एक ऐसा मद है जिसमें व्यक्ति बिना सोचे समझे धनराशि खर्च करता है। व्यक्ति अपने विवेक से काम लेना छोड़ कर भावना में बह जाता है। यह व्यक्ति को स्वार्थी और विवेहीन दर्शाता है।
आज के युवा वर्ग में फिजूलखर्ची बहुत ही आम बात है। इसके लिए बहुत हद तक आज के अभिभावक भी ज़िम्मेवार हैं। खोखले दिखावे के चक्कर में अभिभावक अपने बच्चों की अनावश्यक मांगों को भी पूरा करने लगते है। अपने पास-पड़ोस में दूसरे लोगों को देखकर अभिभावक उन सामग्रियों को खरीदना शुरू कर देते हैं जिनकी उस समय कोई आवश्यकता नहीं होती। अभिभावकों के द्वारा इस प्रकार बच्चों में फिजूलखर्ची की भावना जगाई जाती है। दिखावे के चक्कर में अपने आर्थिक परिस्थिति को नज़र अंदाज कर अभिभावक चीजों को खरीदने लगते है। इस प्रकार बच्चों में पैसों की कीमत का महत्व कम हो जाता है। वे विद्यालयों और अन्य जगह कोई वस्तु जो उन्हें पसंद आती हो, उसकी मांग अपने अभिभावकों से शुरू कर देते है। कुछ अभिभावक यदि इन सब से दूर होना चाहते हैं तो बच्चे और अभिभावक स्वयं हीन-भावना के शिकार होते जाते हैं।
फिजूलखर्ची कहीं से भी सही नहीं है। लोग इसके चक्कर में अनावश्यक पैसे खर्च करते जाते हैं, जिसके फलस्वरूप आर्थिक हानि का भी शिकार होते हैं। बहुत सारे लोग कर्ज के बोझ में दबते जाते है। यदि कोई अभिभावक अपने घर में अथवा बच्चों में फिजूलखर्ची को रोकने की बात करते हैं, तो बच्चे मानसिक पीड़ा का अनुभव करते हैं। परिवार में कलह अपना घर करने लगता है। ऐसे अनेक घटनाएँ आए दिन अखबारों में छपते रहती हैं जिनमें बच्चों द्वारा गलत काम किए जाने के समाचार मिलते हैं। अभिभावकों और लोगों में अपने अनावश्यक जरूरतों को पूरा करने के लिए भ्रष्टाचार जन्म लेने लगता है। बच्चे मानसिक रूप से परिवार से दूर होने लगते हैं।
अतः फिजूलखर्ची को हमें नियंत्रित करना चाहिए और ऐसे तमाम मदों में खर्च करने से बचना चाहिए जिनका कोई औचित्य नहीं है। इस बचत से हम अपने परिवार और स्वयं के लिए और अच्छा कर सकते हैं। हम इस धनराशि का जरूरतमन्द बच्चों और लोगों में भी वितरित कर सकते हैं अथवा उनके लिए कुछ अच्छा कर सकते हैं, इससे वास्तव में इस धनराशि का सही प्रयोग सुनिश्चित हो पाएगा।
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