परिवार में माँ का स्थान
परिवार में माँ का स्थान
माँ
प्रकृति की सबसे
अनमोल कृति है।
संसार की जब
रचना हुई तो
ईश्वर ने सोचा
होगा कि वह
खुद तो हर
जगह उपस्थित नहीं
रह सकते इसलिए
माँ का सृजन
किया। माँ शब्द
जुबान पर आते
ही हमारा मन
आह्लादित हो उठता
है। माँ अपने
आप में एक
शब्द न होकर
पूरा वाक्य है।
परिवार में माँ
को सबसे श्रद्धात्मक और भावनात्मक
स्थान प्राप्त होता
है। माँ रूपी शब्द के उच्चारण मात्र से ही सारे कष्ट दूर हो जाते हैं,
माँ का प्यार भरा स्पर्श सारे दुःख दर्द को दूर कर देता हैं. माँ का प्रेम बच्चो के लिए अमृत के सामान होता हैं ।
माँ ह्रदय इतना विशाल होता हैं. जो की अपने बच्चो के सारे दुःख दर्द को अपने विशालकाय ह्रदय में समाहित कर लेती हैं और अपने बच्चो के सारे दुखो को हर लेती हैं, और अपनी सारी खुशियाँ अपने बच्चो पर निछावर कर देती हैं । खुद भूखी रह कर अपने बच्चो का पेट सिर्फ और सिर्फ माँ ही भर सकती हैं। माँ के जैसा संसार में दूसरा ना कोई हैं और ना कोई होगा जो बिना स्वार्थ अपना सारा प्रेम अपने बच्चो पर ख़ुशी ख़ुशी निछावर कर देती हैं।
माँ
पर परिवार में
सबसे अधिक ज़िम्मेदारी होती है।
बच्चे को जन्म
देने से पूर्व
अपने कोख में
रखना और फिर
जन के पश्चात
अपना स्तनपान कराना
ये माँ ही
करती है। वह
पूरे परिवार के
लिए सभी घरेलू
कार्य जैसे भोजन
पकाना, कपड़े धोना, घर की
साफ-सफाई करना
और बच्चों की
देखभाल करना आदि
कार्यों में अपना
अधिकांश समय दे
देती है। बच्चे
के जन्म से
लेकर उसके विवाह
तक उसकी पूरी
ज़िम्मेदारी माता-पिता
पर होती है, लेकिन इसमें
माँ की भूमिका
पिता से ज्यादा
होती है। बच्चे
का सही मार्गदर्शन करना, नैतिकता का पाठ
पढ़ाना सहित उसके
स्वास्थ्य की देखभाल
करना ये सब
एक माँ के
लिए एक चुनौती
भरा काम होता
है। इनकी अनदेखी
बच्चे को पथभ्रमित
कर सकती है।
यदि परिवार में
बालिका हो तो
माँ उसके पहले
मित्र स्वरूप होती
है, जो उसे
दुनिया के सामने
स्वयं को सही
रूप में प्रदर्शित
करने हेतु प्रेरित
करती है।
इतना
कठिन जीवन होते
हुए भी सभी
परिवारों में इन्हें
वह स्थान और
सम्मान नहीं मिल
पाता जिसकी वो
हकदार हैं। आजकल
के बच्चे टीवी, मोबाइल और
इंटरनेट पर ज्यादा
समय व्यतीत करने
लगे हैं। उनके
पास अपने माँ
के पास बैठने
और उनसे बात
करने का समय
ही नहीं है, इसलिए अब
बच्चों में अपने
माता-पिता के
प्रति वैसे लगाव
का अभाव पाया
जाता है, जैसे पहले देखा
जाता था। वर्ष
में एक दिन
“हैप्पी मदर्स दे”
मनाने और अपने-अपने माताओं के
साथ फोटो खिंचवा
कर सोशल वैबसाइट
पर इसे अपलोड
करने में इनकी
ज्यादा रुचि होती
है। हालांकि अनेक
सामाजिक संस्थाएं और
फिल्मों के माध्यम
से परिवार में
माँ को समान
दिलाने की कोशिश
की जाती रही
है। अनेक गीत
लिखे गए हैं, और फिल्मों
का निर्माण हुआ
है।
माँ
पर कुछ विद्वानों
के विचार इस
प्रकार हैं :- (1) अब्राहम
लिंकन : मैं जो कुछ भी हूँ या होने की उम्मीद रखता हूँ, इसका सारा श्रेय मेरी माता को जाता है. (2) एक महिला को माँ, वाइफ और राजनेता की भुमाकी एक साथ निभानी पड़ती है : ईमा बोनीनों (3) मैं अपनी माँ को एक मजबूत बुनियाद देने के लिए हमेशा अहसानमंद रहूँगा- शिव खेड़ा
अतः
हमें अपनी माताओं
का समान करना
चाहिए और उनकी
आँखों में कभी
आँसू नहीं आने
देना चाहिए। उनकी
खुशी के लिए
हमेशा प्रयासरत रहना
चाहिए। जीवन के
किसी भी मोड़
में हमें इन्हें
अकेला नहीं छोड़ना
चाहिए। यदि हम
घर पर अपने
माता-पिता को
खुश रखते हैं
तो ऊपर ईश्वर
भी खुश रहता
है।
Nice blog brother
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