कोविड-19 महामारी (COVID-19)

कोविड-19 महामारी

कोविड-19 महामारी सबसे पहले चीन देश के वुहान क्षेत्र में देखा गया और तदुपरान्त इसका प्रसार पूरे विश्व में होता गया और पिछले कुछ महीनों से पूरे विश्व के लोग इस महामारी से आक्रांत हैं। वैसे तो कोविड की बीमारी नई नहीं है लेकिन ऐसा माना जाता है कि चीन द्वारा इसे नया रूप दिया गया, हालांकि इसके कोई प्रामाणिक तथ्य नहीं हैं अपितु ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसे देशों ने इस महामारी को फैलाने वाले वाइरस कोरोना का जन्मदाता चीन को माना है। इन देशों का यह भी मानना है कि चीन के वुहान स्थित प्रयोगशाला में इसे बनाया गया और जैविक हथियार के रूप में तैयार किया जा रहा था, लेकिन दुर्घटनावश यह फैलता गया।

कोविड-19 शब्द की वैश्विक उत्पत्ति तीन शब्दों के मेल से हुई है और वह है कोरोना, वाइरस, दिसम्बर 19 । तात्पर्य यह है कि इन तीन शब्दों का संक्षिप्त रूप कोविड-19 के रूप में प्रचलित हुआ। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दिसंबर 2019 मिलने वाले इस कोरोना वाइरस को आधिकारिक रूप से कोविड-19 का नाम दिया जो पूरे विश्व में प्रचलित है और इसी नाम से जाना जाता है। जब यह बीमारी फैलना प्रारम्भ हुआ तो इससे प्रभावित होने वाले लोगों में उच्च ताप के साथ से बुखार होना, सर्दी-खांसी होना, गले में खरास के साथ दर्द होना और गंभीर स्थिति में सांस फूलना जैसे लक्षण देखे जाने लगे। प्रभावित मरीज का ऑक्सीज़न का स्तर सामान्य से बहुत नीचे चला जाने लगा । चूंकि यह बीमारी पूरे विश्व के लिए नई थी और इसके चिकित्सा हेतु कोई प्रभावी दावा चिन्हित नहीं थी इसलिए चिकित्सकों के लिए यह विकट समस्या थी की कोरोना से प्रभावित मरीजों का इलाज किस प्रकार किया जाए, अंत में विश्व स्वास्थ्य संगठन के निर्देश पर लक्षणों का ईलाज किया जाने लगा जो आज भी जारी है।

पहले इस महामारी से चीन का वुहान प्रांत प्रभावित हुआ और सैकड़ों लोग मारे गए। इसके पश्चात चीन के अन्य प्रांत भी इसकी चपेट में आते गए। फिर विश्व के तमाम राष्ट्र जैसे अमेरिका, जर्मनी, यूनाइटेड किंग्डम, ब्राज़ील, भारत सहित अन्य यूरोपीय देश, अफ्रीकन देश और एशियाई देश भी प्रभावित होते गए। विश्व में 10 लाख से अधिक लोग मारे गए। इस बीमारी से बचाव के लिए एकांत व लोगों से संपर्क न रखने, मास्क का प्रयोग करने और सेनीटाइजर का प्रयोग करने को प्राथमिकता दी गई। अतः भारत सहित विश्व के तमाम देशों ने अभूतपूर्व निर्णय लेते हुए लॉकडाऊन की घोषणा कर दी।  भारत में लॉकडाऊन की घोषणा 22 मार्च को की गई और इसी तरह अन्य देशों ने भी लॉकडाऊन की तिथियाँ घोषित कर दी। लॉकडाऊन के कारण भारत जैसे विशाल देश में कोरोना के प्रसार को बहुत हद तक नियंत्रित रखा गया और जान-माल की हानि को कम किया गया, अपितु कारखानों के बंद होने और रोजगार के साधन छिन जाने के कारण एवं सार्वजनिक वाहनों पर प्रतिबंध लग जाने के कारण हजारों मजदूर सड़क पर पैदल चलने को मजबूर हो गए। कई लोग भूख व परेशानी से मारे गए। सरकार को जब आलोचना झेलनी पड़ी तो इनके लिए व्यवस्था करने का प्रयास किया गया। इस दौरान सरकार सहित देश के स्वयंसेवी संस्थाओं ने गरीबों और जरूरतमंदों तक राशन और भोजन पहुंचाने का बीड़ा उठाया। इससे लोगों की परेशानी कुछ कम होती देखी गई। लोगों ने दिल खोलकर दान दिया और जरूरतमंदों की मदद की इस तरह लॉकडाऊन एवं कोरोना से लड़ने में देश सफल हुआ। अमेरिका जैसे देशों ने लॉकडाऊन देर से लगाया जिसका खामियाजा हजारों लोगों की जान से उन्हें देना पड़ा। खैर ये समय बीत गया, पर किसे मालूम था की कोरोना जो दिसंबर 2020 तक पूरे विश्व में समाप्त माना जाने लगा था, यूनाइटेड किंग्डम से दोबारा शुरू हो जाएगा।

कोरोना ने अपनी दूसरी पारी  मार्च 2021 से शुरू की। सबसे पहले इसके मरीज यूनाइटेड किंग्डम में देखे गए और सैकड़ों लोग बीमार हुए और जान से हाथ धो पड़े परंतु यूनाइटेड किंग्डम ने अपने बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं और सुदृढ़ प्रशासनिक क्षमता के कारण इस पर नियंत्रण रखने में जीत हासिल कर ली। तदुपरान्त इसने एशियाई देशों को निशाना बनाया। भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश के लिए ये विकट काल था। इस दौरान हमारे देश भारत में इसे बहुत हल्के में लिया गया और लॉकडाऊन न लगाना, चुनाव करवाना, रैलियाँ करवाना देश के लिए त्रासदी साबित हुआ और कुछ ही दिनों में देश का हर कोना इससे संक्रमित होता गया। भारत स्वास्थ्य सुविधाओं में अत्यंत पिछड़े देशों की श्रेणी में आता है, ऐसे में जब एक साथ सैकड़ों मरीज अस्पताल पहुँचने लगे तो सारी व्यवस्था चरमरा गई। ऑक्सीज़न और दवाओं की कालाबाजारी शुरू हो गई। लोग उचित स्वास्थ्य सेवा नहीं मिलने के कारण प्राण गँवाने लगे और यही हाल पूरे देश का होता गया।  अप्रैल के मध्य तक देश के सभी बड़े शहर से सैकड़ों लोगों की मौत की खबर आने लगी। देश में मेडिकल इमरजेंसी के हालात होते गए। अन्य देशों ने मदद के लिए हाथ बढ़ाया। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, इसराइल, सऊदी अरब, सिंगापुर, चीन आदि से चिकित्सीय उपकरण, दवाएं और आवश्यक सामग्रियाँ भेजी जाने लगी जो आज भी जारी है। देश के लिए मध्य अप्रैल से लेकर मध्य मई तक का समय अत्यंत दुखड़ाई रहा। हमारे कितने परिचित, कितने हितैषी छोड़ कर चले गए। 20 मई के उपरांत भारत में मरीजों की संख्या कम होने लगी लेकिन मौतों का क्रम थमने का नाम नहीं कर रहा।

पूरे विश्व ने कोरोना से बचाव के लिए टीकाकरण को सबसे प्रभावी बताया। 10-11 महीनों में कोरोना से लड़ने के लिए अमेरिका ने फ़ाइज़र, रूस ने स्पूतनिक, भारत में कोविशील्ड और कोवेक्सीन तथा चीन का भी टीका बाज़ार में आ गया। टीकाकरण सरकारों ने अपने नियंत्रण में शुरू कर दिया है। भारत में पहले 18 वर्ष से ऊपर के लगभग 20 करोड़ लोगों को टीका दिया जा चुका है। अमेरिका और अन्य यूरोपीय देशों में टीकाकरण जारी है। इसराईल पहला देश बना जो अपने सभी नागरिकों को टीका लगा सका और अब खुद को कोरोना मुक्त घोषित कर चुका है। कई यूरोपीय देशों ने खुद को कोरोना मुक्त घोषित कर दिया है।

कोरोना की तीसरी लहर की चर्चा ज़ोरों पर है। वैज्ञानिकों का मानना है कि तीसरी लहर से सबसे अधिक बच्चे प्रभावित होंगे, अतः विश्व के देशों की सरकारें इसके बचाव हेतु प्रयास कर रही है। अभी सिंगापुर में इसके लक्षण दिखने शुरू हुए हैं। ऐसा माना जा रहा है की भारत में इसका प्रभाव सितंबर 2021 के बाद हो सकता है। अतः हमारे देश में भी इससे बचाव और टीकाकरण को तेज़ करने पर युद्ध स्तर पर कार्य किया जा रहा है। सरकारों ने जो गलती की है अब उसे दुहराने के मूड में नहीं है। ऐसे में हमारा कर्तव्य है की हम सरकार और स्वास्थ्य संगठन द्वारा बताए गए निर्देशों का पालन करें। हमारी एक लापरवाही न केवल हमारे जान के लिए बल्कि हमारे परिवार और समाज के लिए घातक साबित हो सकती है।

हम सभी को जब भी घर से बाहर निकलें मास्क पहनकर निकालना चाहिए। सामाजिक दूरी (कम से कम 1 मीटर) का पालन करना चाहिए। सेनीटाइजर का प्रयोग घर से बाहर रहने पर करना चाहिए। हाथ को बार-बार साबुन से धोने की आदत डालनी होगी। बेवजह घर से निकलने से खुद को और परिवार के अन्य सदस्यों को रोकना होगा। अपने मित्रों और रिश्तेदारों को कोरोना महामारी से बचाव के संदेश भेजते रहना होगा और उन्हें सतर्क रहने हेतु प्रेरित करना होगा। हमारे आप-पास जो लोग कोरोना से प्रभावित हो रहे हैं उन्हें अपने स्तर पर मदद करने की पहल जारी रखनी होगी। इन्हीं उपायों से हम और हमारा देश, हमारा विश्व बच सकता है। देश में मरीजों के लिए ऑक्सीज़न सिलेंडरों की कमी ने वृक्षों का महत्व हमें समझाया है। हमें प्रकृति से छेड़छाड़ करना छोड़ देना होगा। अंत में कहना चाहूँगा "सर्वे भद्राणि पश्यंतु, सर्वे संतु निरामया" ।।

 

 


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