मित्रता

मित्रता
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मित्रता एक ऐसा पारस्परिक संबंध है जो दो जीवों को मानसिक रूप से जोड़ती है। सभी जीव-जंतुओं में मित्रता किसी न किसी रूप में दिखाई देती है। मानव जीवन में मित्रता सबसे वृहत रूप में दृष्टिगोचर होती है। मानव की मित्रता यदि सच्ची हो तो वह अपनी पराकाष्ठा में होती है।

मित्रता सच्ची या झूठी नहीं होती है। यदि हम किसी से मित्रवत भाव रखते हैं तो वह सच्ची भावना से ही होती है। जब भी हमारे मन में उस व्यक्ति के लिए हीन भावना या तिरस्कार की भावना जग जाती है तो वह मित्रता, शत्रुता में परिवर्तित हो जाती है। मानव में मित्रों में अलगाव अथवा मतभेद सामान्य है, लेकिन पशु-पक्षियों में मित्रता अटूट होती है। इतिहास में मित्रता के अनेक उदाहरण भरे पड़े हैं। शुरुवात यदि पुरातन युग से करें तो महाभारत काल में अर्जुन-श्री कृष्ण, श्री कृष्ण-सुदामा और दुर्योधन-बलराम की मित्रता प्रसिद्ध थी। सनातन युग में भगवान राम और शुग्रीव की मित्रता से राम-रावण युद्ध में विजय प्राप्त हुई। सल्तनत काल से पूर्व पृथ्वीराज चौहान और चंदवरदाई की मित्रता पर अनेक कहानियाँ भरी पड़ी हैं। मध्य काल में अकबर और बीरबल की मित्रता प्रमुख थी।

मित्र बनाने की शुरुवात तो बाल्यकाल से ही शुरू हो जाती है। जब हम अध्ययन हेतु विद्यालय अथवा शिक्षण संस्थान जाते हैं तो अनायास ही अनेक मित्र बनने लगते हैं। इस स्थिति में हमें मित्रों के चुनाव के समय सावधानी बरतना चाहिए। अच्छे मित्र जहां हमें अच्छे मार्ग पर ले जाते हैं और हमारे जीवन को संवार सकते हैं वहीं बुरे मित्रों के संपर्क में पड़ कर हम अपना जीवन बर्बाद कर सकते हैं। ऐसे मित्र हमें संकट में दाल सकते हैं।

परोक्षे कार्यहस्तांतरम प्रत्यक्षेप्रियवादिनम, वर्ज्येत्तादृश्यम मित्रम विष्कुंभम पयोमुखम ।
(जो मित्र सामने प्रशंषा करें और पीठ पीछे बुराई करें वैसे मित्र को तुरंत त्याग देना चाहिए जैसे विश से भरे घड़े को)

मथत मथत माखन रही, दही मही बिलगाव, रहिमन सोई मीत हैं, भीर परे ठहराय ।
(सच्चा दोस्त वक्त पर ही परखा जाता है जिस प्रकार दही मट्ठे में परिवर्तित होकर मक्खन को अपने ऊपर आश्रय देती है वैसे ही सच्चा मित्र विपति में अपने मित्र को बचाने के लिए अपना अस्तित्व समाप्त कर देता है।)

इस प्रकार हम देखते हैं कि मित्रता के उदाहरण हमें सहिष्णु और परिपक्व बनाते हैं। हमें अपने जीवन में अवश्य मित्र बनाने चाहिए। सच्चे मित्र, जो आपके लिए हमेशा तत्पर हों विरले ही मिलते है। उसे सबसे बड़ा दुर्भाग्यशाली माना जाता है जिसने अपने जीवन में एक भी सच्चा मित्र नहीं बनाया। आज मानव मक्कारी, धूर्तता और मतलबीपन का शिकार होता जा रहा है। मित्रों को हानि पहुंचाने और धोखा देने में तनिक भी संकोच नहीं करता है, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि सच्चे मित्र भगवान की देन होते हैं। अतः हमें मित्रता का महत्व समझ कर सच्चे और अच्छे मित्रों को कभी नहीं खोना चाहिए।


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